ज्ञान, ध्यान और मोक्ष का वैदिक स्रोत – उपनिषद 

उपनिषद भारतीय इतिहास के कुछ सबसे महत्वपूर्ण और पवित्र ग्रंथ हैं। इनमें जीवन, आत्मा और ब्रह्मांड के बारे में गहन विचार और आध्यात्मिक अवधारणाएँ समाहित हैं। ये ग्रंथ वेदों के अंत में आते हैं और इन्हें अक्सर वेदांत कहा जाता है, जिसका अर्थ है “वेदों का अंत”। उपनिषदभारतीय दर्शन की शुरुआत का प्रतीक हैं और इन्होंने दुनिया भर के कई धर्मों और विचारकों को प्रभावित किया है।  

“उपनिषद” शब्द तीन संस्कृत शब्दों से मिलकर बना है:  

उप (निकट)  

नि (नीचे)  

षद् (बैठना)  

इसका अर्थ है एक छात्र जो गुप्त या पवित्र ज्ञान सीखने के लिए शिक्षक के निकट बैठता है। उपनिषद जीवन के सबसे महत्वपूर्ण प्रश्नों पर शिक्षकों और छात्रों के बीच वार्तालाप के रूप में लिखे गए हैं:  

मैं कौन हूँ? 

जीवन का उद्देश्य क्या है?  

मृत्यु के बाद क्या होता है?  

वेद (1500-1000 ईसा पूर्व): 

उपनिषदों से पहले, वेद थे, जो भारत के सबसे प्राचीन ग्रंथ थे। वेदों में शामिल हैं:  

संहिताएँ – देवताओं के लिए भजन और प्रार्थनाए  

ब्राह्मण – अनुष्ठान और अनुष्ठानों के नियम  

आरण्यक – ध्यान के लिए वन ग्रंथ  

उपनिषद – आध्यात्मिक शिक्षाए  

उपनिषद वेदों का हिस्सा हैं, लेकिन अनुष्ठानों पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय, वे ब्रह्मांड, आत्मा (आत्मा) और ईश्वर (ब्रह्म) के बारे में गहन प्रश्न पूछते हैं।  

उपनिषद कब लिखे गए थे?  

200 से ज़्यादा उपनिषद हैं, लेकिन 108 महत्वपूर्ण माने जाते हैं, और लगभग 12-13 को मुख्य या प्रमुख उपनिषद कहा जाता है। दार्शनिकों द्वारा इनका सबसे अधिक अध्ययन भी किया गया है।  

प्रारंभिक उपनिषद (800-400 ईसा पूर्व):  

ये सबसे प्राचीन और सबसे महत्वपूर्ण हैं। इनमें बृहदारण्यक उपनिषद, छांदोग्य उपनिषद, तैत्तिरीय उपनिषद, ऐतरेय उपनिषद, केन उपनिषद, कठ उपनिषद, ईश उपनिषद, मुंडक और मांडूक्य उपनिषद तथा प्रश्न उपनिषद शामिल हैं। ये प्राचीन संस्कृत में लिखे गए थे और काव्यात्मक एवं दार्शनिक विचारों से परिपूर्ण हैं।  

उत्तरकालीन उपनिषद (200 ईसा पूर्व – 1200 ईस्वी):  

ये बौद्ध और जैन धर्म के आरंभ के बाद लिखे गए थे। इन पर अन्य आध्यात्मिक विचारों का प्रभाव दिखाई देता है और ये प्रायः शिव, विष्णु या देवी जैसे विशिष्ट देवताओं पर केंद्रित होते हैं। कुछ उत्तरकालीन उपनिषद योग, संन्यास और ध्यान पर आधारित हैं। उदाहरणों में श्वेताश्वतरउपनिषद, कैवल्य उपनिषद, योग तत्व उपनिषद और तेजोबिंदु उपनिषद शामिल हैं। 

उपनिषदों में मुख्य विचार: 

उपनिषद गहन विचारों से भरे हैं। ये हमें निम्नलिखित के बारे में शिक्षा देते हैं:  

ब्रह्म – परम सत्य 

ब्रह्म परम सत्य है। यह अदृश्य, अनंत और ब्रह्मांड की हर चीज़ का स्रोत है। यह कोई साकार ईश्वर नहीं, बल्कि हर चीज़ के पीछे छिपी सार्वभौमिक शक्ति है। “सब कुछ ब्रह्म है।” – छांदोग्य उपनिषद। 

आत्मा – आंतरिक आत्मा:  

आत्मा प्रत्येक व्यक्ति के भीतर की आत्मा या सच्चा स्वरूप है। उपनिषद कहते हैं कि आत्मा ब्रह्म के समान है, अर्थात आत्मा और ब्रह्मांड एक हैं। “तत् त्वम् असि” – तुम वही हो (तुम ब्रह्म हो)।  

मोक्ष – पुनर्जन्म से मुक्ति: 

उपनिषद सिखाते हैं कि हम कई बार जन्म और मृत्यु (पुनर्जन्म) से गुजरते हैं। लक्ष्य इस चक्र से मुक्त होकर मोक्ष, या आध्यात्मिक स्वतंत्रता प्राप्त करना है। यह तब होता है जब हम अपने वास्तविक स्वरूप (आत्मा = ब्रह्म) को जान लेते हैं। 

कर्म – कर्म का नियम:  

उपनिषद भी कर्म के बारे में बताते हैं, जिसका अर्थ है कि हमारे कर्मों के परिणाम होते हैं। अच्छे कर्म अच्छे परिणाम लाते हैं; बुरे कर्म दुख लाते हैं। इसका प्रभाव हमारे भावी जीवन पर भी पड़ता है। 

 उपनिषद कैसे लिखे गए हैं:  

उपनिषद पाठ्यपुस्तकों की तरह नहीं लिखे गए हैं। वे काव्यात्मक और प्रतीकों से भरे हैं। अक्सर बातचीत के रूप में। कहानियों, दृष्टांतों और उदाहरणों का प्रयोग करें। बड़े प्रश्न पूछें और उत्तर खोजें। प्रसिद्ध वार्तालापों में शामिल हैं:  

याज्ञवल्क्य और मैत्रेयी – प्रेम और अमरता के बारे में।  

नचिकेता और यम (मृत्यु के देवता) – मृत्यु के बाद क्या होता है, इसके बारे में।  

श्वेतकेतु और उनके पिता उद्दालक – आत्मा के बारे में। 

उपनिषद और भारतीय दर्शन:  

उपनिषद वेदांत का आधार हैं, जो भारतीय दर्शन के प्रमुख संप्रदायों में से एक है।  

अद्वैत वेदांत – अद्वैतवाद: 

आदि शंकराचार्य, एक महान भारतीय संत (आठवीं शताब्दी ई.) ने प्रमुख उपनिषदों की व्याख्याएँ लिखीं। उन्होंने अद्वैत, अर्थात् अद्वैतवाद – अर्थात् आत्मा और ईश्वर में कोई अंतर नहीं है, की शिक्षा दी। 

 वेदांत के अन्य संप्रदाय:  

अन्य वेदांत संप्रदाय उपनिषदों की अलग-अलग व्याख्या करते हैं।  

रामानुज का विशिष्टाद्वैत – ईश्वर और आत्मा जुड़े हुए हैं, लेकिन एक नहीं हैं।  

माधव का द्वैत – ईश्वर और आत्मा सदैव पृथक हैं।  

फिर भी, सभी संप्रदाय उपनिषदों को पवित्र ग्रंथ मानते हैं।   

अन्य धर्मों पर प्रभाव:  

उपनिषदों के विचारों ने बौद्ध धर्म और जैन धर्म को प्रभावित किया। ये धर्म बाद के उपनिषदों के लगभग उसी समय शुरू हुए थे। बुद्ध ने एक अलग मार्ग सिखाया, स्थायी आत्मा (अनत्ता) के विचार को नकारते हुए, लेकिन ध्यान जैसी उपनिषदीय विधियों का उपयोग किया। जैन धर्म भी उपनिषदों की तरह आत्म-अनुशासन और मुक्ति पर केंद्रित है। 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *