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सनातन प्रवाह – शरद ऋतु अंक २०२५

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Description

ऋतुचक्र का प्रत्येक चरण हमें जीवन के गहरे संदेश देता है। शरद ऋतु, अपने शांत आकाश, ठंडी हवाओं और गिरते पत्तों के साथ, हमें यह सिखाती है कि जीवन निरंतर परिवर्तन का नाम है। हर अंत एक नई शुरुआत का द्वार खोलता है, और हर परिवर्तन हमें आत्मचिंतन का अवसर देता है। इसी भावना के साथ हमें अत्यंत हर्ष है कि हम आपके समक्ष सनातनप्रवाह पत्रिका का शरद ऋतु अंक प्रस्तुत कर रहे हैं।

यह अंक प्राचीन भारतीय ज्ञान, आध्यात्मिक परंपराओं और आधुनिक समय की ज्वलंत चुनौतियों का संतुलित संगम है। इसका उद्देश्य केवल जानकारी देना नहीं, बल्कि पाठकों को प्रेरित करना और जीवन में संतुलन लाने की दिशा दिखाना है।

स्वास्थ्य और आयुर्वेद की दृष्टि से, हम इस अंक की शुरुआत ऋतुचर्या (पृष्ठ ०६) से करते हैं। आयुर्वेद हमें बताता है कि प्रकृति के साथ सामंजस्य बनाकर चलना ही अच्छे स्वास्थ्य का मूल है। शरद ऋतु की विशेषताओं को समझना और उनके अनुसार जीवनशैली अपनाना, स्वस्थ और संतुलित जीवन की पहली सीढ़ी है।

परंपरा और संस्कृति के संदर्भ में, पृष्ठ ०९ पर लेख “भारत को चीन से पूजा सामग्री क्यों नहीं आयात करनी चाहिए” एक गहन प्रश्न उठाता है। यह न केवल आर्थिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि हमारी आस्था और पवित्रता की रक्षा से भी जुड़ा है। स्थानीय कारीगरों का समर्थन करना हमारी जिम्मेदारी है, जो भक्तिभाव से पूजा सामग्री का निर्माण करते हैं।

आध्यात्मिक साधकों के लिए, पृष्ठ १२ पर हंसोपनिषद आत्मा के स्वरूप और उसके अनुभव पर गहन प्रकाश डालता है। वहीं पृष्ठ १५ पर “सरल महाभारत” इस महाकाव्य को हर पाठक तक सहज भाषा में पहुँचाने का प्रयास करता है। पृष्ठ १९ पर संकष्टी चतुर्थी व्रत का विवरण हमें विश्वास और अनुशासन से भक्ति मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है।

ज्ञान और विज्ञान की दृष्टि से, पृष्ठ २२ पर “खगोल विज्ञान में नाड़ी” मानव जीवन और तारों की गति के बीच के अद्भुत संबंध को उजागर करता है। पृष्ठ २६ पर सुश्रुत संहिता हमें भारत की प्राचीन शल्य चिकित्सा और चिकित्सा विज्ञान की अद्वितीय परंपरा का स्मरण कराती है। पृष्ठ २९ पर भागवत महापुराण की कथाएँ भक्ति और ज्ञान का सुंदर संगमप्रस्तुत करती हैं।

आधुनिक चुनौतियों पर ध्यान देते हुए, पृष्ठ ३२ पर लेख “चिंता – उत्पादकता का मूक हत्यारा” कार्यस्थल पर मानसिक स्वास्थ्य की गंभीरता और समाधान पर चर्चा करता है। यह हमें याद दिलाता है कि केवल शारीरिक ही नहीं, बल्कि मानसिक स्वास्थ्य भी जीवन की सफलता और संतुलन के लिए अनिवार्य है।

राष्ट्र और सुरक्षा के संदर्भ में, पृष्ठ ३६ पर “आकाशतीर – भारत का स्वदेशी लौह गुंबद” भारत की तकनीकी प्रगति और आत्मनिर्भरता का प्रतीक है। यह लेख हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि शांति तभी संभव है जब राष्ट्र अपनी रक्षा करने में सक्षम हो। आत्मबल और आत्मनिर्भरता ही स्थायी शांति के आधार हैं।

प्रिय पाठकों, हमें विश्वास है कि यह शरद ऋतु अंक आपको ज्ञान, आस्था और आत्मविश्वास से परिपूर्ण करेगा। जैसे प्रकृति इस ऋतु में संतुलन और नवीनीकरण का संदेश देती है, वैसे ही यह पत्रिका आपके जीवन को नई दिशा और ऊर्जा प्रदान करे।

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